कविता: बराती

गांव गांव में बाजत हे,
मोहरी अऊ बाजा |
सूट बूट में सजे हे
आज दूल्हा राजा |
मन ह पुलकत हाबे
जाबोन बरात |
अब्बड़ मजा आही
खाबोन लड्डू अऊ भात |
बरतिया के रहिथे
टेस अड़बड़ भारी |
पीये हे दारु
अऊ देवत हे गारी |
कूद कूद के बजनिया मन
बाजा बजावत हे |
ओले ओले के धुन मे
टूरा मन नाचत हे |
घाम के मारे सब
बेंदरा कस ललियावत हे |
एती वोती देख के
आंखी मटकावत हे |
पहिने हे चशमा अऊ
बांधे हे सांफी |
रहि रहि के पियत हे
बराती मन पानी |
गांव गांव में बाजत हे
मोहरी अऊ बाजा |
सूट बूट में सजे हे
आज दूल्हा राजा |
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Mahendra Dewangan
रचनाकार
महेन्द्र देवांगन “माटी”
मूल निवास-बोरसी (राजिम)
मो. 8602407353

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2 Thoughts to “कविता: बराती”

  1. सुनिल शर्मा "नील"

    बरात के बने बरनन करे हव् माटी जी…बधाई हो

  2. Mahendra Dewangan Mati

    धन्यवाद भैयाजी कविता ल पसंद करेव

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